Petrol Diesel Price Today: पेट्रोल-डीजल के दामों में उतार-चढ़ाव, जानें आज आपके शहर में क्या है रेट

Akash Saharan
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Petrol Diesel Price Today: पेट्रोल-डीजल के दामों में उतार-चढ़ाव, जानें आज आपके शहर में क्या है रेट

आप जब भी अपनी गाड़ी में पेट्रोल भरवाते हैं, तो उस 100 रुपये की पर्ची को देखकर कभी सोचा है कि उसमें से असल में तेल कितने का है और सरकार की हिस्सेदारी कितनी है? इसका जवाब सुनकर आप थोड़ा हैरान हो जाएंगे.

आज तारीख है 21 जुलाई 2025, और हम सिर्फ आपको आज के रेट्स नहीं बताने वाले, बल्कि उस पूरे ‘खेल’ को परत-दर-परत खोलकर रख देंगे, जिसकी वजह से हमारी और आपकी जेब पर बोझ कम होने का नाम ही नहीं ले रहा.

तो चलिए, सबसे पहले देखते हैं कि आज भारत के बड़े शहरों में पेट्रोल-डीजल के दाम क्या कह रहे हैं.

  • दिल्ली में पेट्रोल ₹94.77 और डीजल ₹87.67 प्रति लीटर पर मिल रहा है.
  • मुंबई में पेट्रोल की कीमत ₹103.44 और डीजल की ₹89.97 है.
  • कोलकाता वालों के लिए पेट्रोल ₹104.95 और डीजल ₹91.76 का है.
  • चेन्नई में पेट्रोल ₹100.76 और डीजल ₹92.35 है.
  • और बेंगलुरु में पेट्रोल लगभग ₹102.92 और डीजल ₹89.02 प्रति लीटर के आसपास बना हुआ है.

यूपी-बिहार के शहरों में दिखा बदलाव

कुछ शहरों में तेल के दाम घटे हैं तो कुछ जगह पर बढ़ोतरी दर्ज की गई है –

  • नोएडा (गौतमबुद्ध नगर): पेट्रोल 18 पैसे सस्ता होकर ₹94.75, डीजल 19 पैसे कम होकर ₹87.78
  • गाजियाबाद: पेट्रोल 19 पैसे महंगा होकर ₹94.64, डीजल 21 पैसे बढ़कर ₹87.41
  • पटना: पेट्रोल 28 पैसे बढ़ा, अब ₹105.43, डीजल 27 पैसे चढ़कर ₹91.69

सबसे बड़ा सवाल – दाम ठहरे हुए क्यों हैं?

अब आप कहेंगे कि इन कीमतों में तो महीनों से कोई खास हलचल नहीं हुई. और दोस्त, यही तो आज का सबसे बड़ा सवाल है! जब दुनिया भर में कच्चे तेल का बाज़ार रोज़ ऊपर-नीचे होता है, तो फिर हमारे देश में पेट्रोल-डीजल के मीटर पर दाम लगभग एक ही जगह पर क्यों अटक गए हैं?

इस ठहराव के पीछे एक नहीं, बल्कि तीन बड़े खिलाड़ी हैं, जिन्हें हम एक-एक करके समझेंगे. पहला है तेल कंपनियों का अपना हिसाब-किताब, दूसरा है सरकार की टैक्स वाली तिजोरी, और तीसरा है चुनावी राजनीति का प्रेशर. ये तीनों मिलकर वो पूरा खेल रचते हैं, जिसका सीधा असर हमारी जेब पर पड़ता है.

चलिए, 100 रुपये की पर्ची का पोस्टमॉर्टम करते हैं

तो आखिर ये पेट्रोल इतना महंगा होता कैसे है? आइए, आपके 100 रुपये का पूरा हिसाब समझते हैं.

इसमें सबसे पहला हिस्सा है बेस प्राइस, यानी कच्चे तेल को साफ करके पेट्रोल बनाने का खर्चा. आज की तारीख में ये खर्चा करीब 45 से 50 रुपये के बीच आता है.

अब एंट्री होती है पहले बड़े खिलाड़ी की – केंद्र सरकार का टैक्स (एक्साइज ड्यूटी). ये हर लीटर पर करीब 20 से 25 रुपये होता है.

इसके ठीक बाद आता है दूसरा बड़ा खिलाड़ी – राज्य सरकार का टैक्स (VAT). ये हर राज्य में अलग-अलग होता है, और इसी वजह से दिल्ली और मुंबई के रेट में इतना फर्क दिखता है. ये टैक्स भी लगभग 15 से 25 रुपये तक बैठता है.

और आखिर में आता है पेट्रोल पंप चलाने वाले डीलर का कमीशन, जो हर लीटर पर करीब 3 से 4 रुपये होता है.

तो जब आप इन सबको जोड़ते हैं, तो जो पेट्रोल आपको 45-50 रुपये का मिलना चाहिए था, वो टैक्स और कमीशन के चक्रव्यूह में फंसकर 100 रुपये के पार चला जाता है.

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तो फिर “असली खेल” क्या है?

अब सवाल उठता है कि दाम स्थिर रखने का यह “असली खेल” चल कैसे रहा है?

पहला खिलाड़ी: तेल कंपनियां और उनका मार्जिन. हमारी सरकारी तेल कंपनियां (इंडियन ऑयल, BPCL, HPCL) कागजों पर तो रोज़ कीमतें बदलने के लिए आज़ाद हैं. लेकिन कुछ समय पहले, जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम आसमान छू रहे थे, तब इन कंपनियों ने घाटा सहकर भी देश में कीमतें नहीं बढ़ने दीं. अब जब कच्चे तेल के दाम कुछ नर्म पड़े हैं, तो ये कंपनियां अपना पुराना घाटा भरने के लिए मार्जिन बढ़ाकर बैठी हैं. मतलब, सस्ते तेल का फायदा आप तक नहीं पहुंचने दे रही हैं.

दूसरा खिलाड़ी: सरकार का खजाना और टैक्स का मायाजाल. आपको शायद यकीन न हो, लेकिन पेट्रोल-डीजल पर लगने वाला टैक्स केंद्र और राज्य सरकारों की कमाई का बहुत बड़ा ज़रिया है. देश की सड़कें, सरकारी योजनाएं, और दूसरे विकास के काम काफी हद तक इसी पैसे से चलते हैं. इसीलिए कोई भी सरकार अपनी कमाई का ये स्रोत आसानी से कम नहीं करना चाहती. पेट्रोल-डीजल को इसीलिए अब तक GST से बाहर रखा गया है, क्योंकि GST में आते ही टैक्स की एक सीमा तय हो जाएगी और सरकारों को अपनी कमाई घटने का डर है.

तीसरा और आखिरी खिलाड़ी: चुनावी शतरंज. आपने गौर किया होगा कि जैसे ही देश में चुनावी माहौल बनता है, पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने बंद हो जाते हैं. ये महंगाई को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनने से रोकने और वोटरों की नाराज़गी से बचने के लिए किया जाता है. यह एक ऐसा बैलेंसिंग एक्ट है, जिसे सरकारें हमेशा साधने की कोशिश करती हैं – खजाना भी भरता रहे और जनता का गुस्सा भी काबू में रहे.

तो अब आगे क्या?

तो लब्बोलुआब ये है कि आपकी गाड़ी की टंकी में भरा जाने वाला पेट्रोल सिर्फ तेल नहीं, बल्कि तेल कंपनियों के मार्जिन, सरकारों के टैक्स और देश की राजनीति का एक कॉम्प्लेक्स कॉकटेल है. दाम इसलिए नहीं हिल रहे, क्योंकि कंपनियां अपना हिसाब बराबर कर रही हैं और सरकारें अपनी तिजोरी खाली नहीं करना चाहतीं.

अब आखिरी और सबसे बड़ा सवाल: क्या हमें इस महंगे ईंधन से कभी कोई बड़ी राहत मिलेगी?

इस पूरे खेल पर आपकी क्या राय है? क्या आपको लगता है कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाना ही इसका एकमात्र समाधान है? अपनी सोच हमें नीचे कमेंट्स में ज़रूर बताइए. और अगर ये जानकारी आपको काम की लगी, तो इस वीडियो को लाइक करें और ऐसे ही वीडियो के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें.

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